लेखनी प्रतियोगिता -17-Aug-2022
उम्मीद
अंधेरे में खुद का साया भी साथ नहीं
और एक लौ की उम्मीद लगाए बैठे हैं
क्या उम्मीद करू इस सूरज से भी
एक दिन तो इसे भी है ढल जाना
तोड़ चुकी है ये दुनिया ख्वाब मेरे
और कितनी हसरतें सजाए बैठे हैं
क्या उम्मीद करू इस श्याम से भी
एक दिन यादों में है बस जाना
Raziya bano
18-Aug-2022 10:23 AM
Nice
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Abhinav ji
18-Aug-2022 08:39 AM
Very nice👍
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Punam verma
18-Aug-2022 07:44 AM
Very nice
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